" आप " हुए आप के या " अपनों " के .......
लेकिन आज तीन सालों के बाद अगर हम इसका परिणाम देखे तब आपको कुछ ऐसा ही लगेगा जैसे ये तो औरों से अलग न हों, चाहे राशन कार्ड का मुद्दा हो या इनके पूर्व कानून मंत्री की डिग्री हो , योगेन्द्र यादव और प्रशन भूषण के साथ हुआ सलूख हो, या अभी हाल ही में कुमार विश्वास को दरनिकार कर " 2-G " को राज्यसभा भेजने का फैसला । इन सारें फैसलों में केजरीवाल और उनके 2-3 साथियों की ही प्रतिबद्धिता नजर आयी । कुल मिलाकर तीन सालों बाद केजरीवाल की छबी " मोदी विरोध " की बन कर रह गयी । इसके विरोध में दिल्ली के मुख्यमंत्री ने हर उसका विरोध किया जो प्रधानमन्त्री के पछ में गयी , वह चाहे सर्जिकल स्ट्राइक हो या जेएनयू विवाद हो , चुनाव आयोग हो या न्यायलय । केजरीवाल ने शुरू से ही केंद्र सरकार पर हमेशा सौतेला व्यवहार करने का आरोप लगाया । हालाँकि एमसीडी चुनाव में आप को करारी हार मिली , लेकिन हम उनके हार या जीत का मंथन नही करना नहीं चाहते , बल्कि हम उन सपनों का मंथन करना चाहते जिसने 2013 में नई राजनीति को जन्म देने का एलान किया था । क्योंकि हम इस बात से इनकार नहीं कर सकते की इस पार्टी से जुड़ने में कईयों ने अपनी नौकरीयों की कुर्बानी दी ,तो कईयों ने अपनी पढ़ाई को छोड़ा । अभी आपने सुना होगा की आप के 21 विधयाकों की सदयस्ता रद्द हो गयी , फिर तो इन्होने न्यायलय को भी नहीं बख्शा । हाल ही में हुए चीफ सेक्रेट्री के साथ हुए थप्पड़ कांड ने विपछ के साथ - साथ पूरे बयूरोक्रेसी को भी आक्रोशित कर दिया ।जीं हां! ये सवाल इसलिए आज उठ रहा क्योंकि जब दिल्ली में आप सरकार आयी तब लोगों को लगा की अब अलग प्रकार की राजनीति होगी और भ्रस्टाचार का भी खात्मा होगा । जनता ने भी इस पार्टी को 67/70 सीटें देकर अपनी ज़िम्मेदारी पूरी की।
केजरीवाल सरकार ने ऐसी भी योजना लायी जिसकी तारीफ़ यूएन द्वारा की गयी , उदाहरण के लिए "मोहल्ला क्लिनिक" को ले लें । लेकिन हम देखेंगे की इनके कामों पर इनका विरोध ही भारी पड़ेगा । अब तो ये आने वाला वक्त ही बताएगा की दिल्ली सरकार कितने महीनों तक अपने आप को अस्थापित रख पायेगी, क्योंकि ऐसा मैं इसलिए कह रहा अब उनके 46 विधायक बचे हैं और बहुमत से तो 10 आगे हैं लेकिन राजनीति में दोस्त कब दुश्मन की तरह व्यवहार करने लगे, इसको होने में समय नहीं लगता। वैसे भी पूर्व मंत्री और मौजूदा विधायक कपिल मिश्रा ने केजरीवाल के खिलाफ अपना अलग ही मोर्चा खोल रखा है जिसको कई प्रभावी लोगों का समर्थन प्राप्त है । दिल्ली सरकार के तो अभी दो साल बाकी है और इनमे वो सभी घोषणाओं को तो पूरा नहीं कर सकते लेकिन हां बहुत कुछ स्थितियों को अपने पछ में कर सकते है । हम केजरीवाल की राजनीतिक अनुभव पर तो शक कर सकते , पर उनके प्रशाशनिक अनुभव को दरनिकार नहीं कर सकते। उम्मीद करते हैं की आने वाले वक्त में हम कुछ सकारात्मक बदलाव देखें , जिससे दिल्लीवासियों का भला हो ।
- नितेश दुबे
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Kejriwal ek pardha likha engg. Hai tho usse pata hai ki.. Sahi chiz ko kaise thorde aur phir apni sahuliyat ke hisab se jorde
ReplyDeletethanks for reading my blog and commenting on it. if you also interested to write on it ,then you are welcome.........
Deleteकेजरीवाल एक बहुत कुशल प्रशासनिक राजनीतिक और ड्रामा करने में महारत प्राप्त खिलाड़ी हैं , दिल्ली की जनता उन्हें देख रही है और वही उनको जवाब देगी....?
ReplyDeleteyou are right he is a drama advertiser
Deleteकेजरीवाल एक बहुत कुशल प्रशासनिक राजनीतिक और ड्रामा करने में महारत प्राप्त खिलाड़ी हैं , दिल्ली की जनता उन्हें देख रही है और वही उनको जवाब देगी....?
ReplyDeleteKejriwal ne lakho hindustani yo ke sapne ko kuchala hai, Anna hazarey ke andolan me jin jin desh wasiyo ne ek brastachar mukt bharat ka sapna dekha us sapne se khela hai kejriwal ne..un bhawanao ki aach me apne raajnaitic roti seki hai. Bewkuf bana sabko jo uske sath diye chahey wo anna ho, ya kumar vishwas...ya parti ke aur sadasya....jo insan unka na huwa jinhone usko arsh se farh pe le gaye wo desh ka kya hoga....
ReplyDeletehaa bhai....
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