पूर्वोत्तर में "कमल" का कमाल , लेफ्ट धड़ाम
वैसे तो जब पूर्वोत्तर की राजनीति की बात होती है तो सिर्फ एक विचारधारा की ही स्वीकार्यता नज़र आती और वो है लेफ्ट, और थोड़ी बहुत कांग्रेस की । लेकिन अब स्तिथियाँ बदल गयी है और अब भगवा रंग लहराता वह पर साफ़ नज़र आ रहा है । वैसे इसकी शुरुवात तो तीन साल पहले असम से हुई लेकिन त्रिपुरा में मिला प्रचंड जनादेश इसकी स्वीकार्यता पर पूरी तरह मुहर लगाते हैं, और इसके साथ नागालैंड में भी भाजपा को मिला जनादेश सिर्फ कांग्रेस मुक्त भारत ही नहीं बल्कि लेफ्ट मुक्त भारत की भी पटकथा लिखी जा रही ।क्योंकि पूर्वोत्तर से उनका सफाया होने के बाद अब सिर्फ वो केरल में शासन कर रहे।
भाजपा को पूर्वोत्तर में मिल रही इस जबरदस्त सफलता के पीछे अगर कोई शख्स है मोदी -शाह के बाद तो वो है उनके पूर्वोत्तर प्रभारी राम माधव। जीं हां इस व्यकित ने जो तत्परता दिखाई चाहे वो अरुणांचल हो, मणिपुर हो ,नागालैंड हो ,त्रिपुरा हो ,असम हो, ये काबिले तारीफ है। लोगों को भी चुनाव कैसे जीते जाते और संगठन का धरातल पर कैसे प्रयोग करना होता इसे भाजपा से सीखना चाहिए । मैं ऐसा इसलिए कह रहा क्योंकि जब पिछले बार त्रिपुरा में विधान सभा चुनाव हुए थे तब भाजपा को 2 फ़ीसदी से भी कम वोट मिले थे और शून्य सीटें। लेकिन इस बार भाजपा ने दो तिहाई बहुमत ला कर इतिहास रच दिया । वही हाल नागालैंड में भी दिख रहा बीजेपी जो की सिर्फ एक सीट जीतने में कामयाब हुई थी पिछली बार , इस बार वो दहाई का आकड़ा पाने में कामयाब रही और नागालैंड में भी बीजेपी को सरकार बनाने में ज्यादा दिक्कत नहीं आनी चाहिए । मेघालय में बीजेपी का प्रदर्शन उनके लि
ए तो संतोषजनक होगा और वह पर भी सरकार बनाने का पूरा प्रयास होगा ।
पूर्वोत्तर में मिली ये सफलता बीजेपी को आने वाले लोकसभा चुनाव में भी बहुत मदद करेंगे। क्योंकि वह पर कुल 25 सीटें आती है और बीजेपी के पास उनमे से 11 हैं बाकि विपछ के पास 14 (कांग्रेस, सीपीएम और अन्य)। आने वाले एक साल में भी बीजेपी इसी लहर को वहां बरकरार रखना चाहेगी जिससे उससे लोकसभा चुनाव में 20+ सीटें मिले ताकि अगर कहीं कमी हो तो यहाँ से भरपाई हो सकें । इस जीत के बाद बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह का भी बॉडी लैंग्वेज अलग देखने को मिला । आमतौर पर गंभीर दिखने वाले शाह पूरी तरह खुश नजर आये और हो भी क्यों न, क्यों की जो सपना प्रधानमन्त्री मोदी ने देखा था पूर्वोत्तर में भाजपा के लिए वो अब कामयाब हुआ । कांग्रेस अपनी राजनीतिक हत्या खुद ही कर रही क्यों की उसके अंदर सरकार बनाने या बचाने की भूख पूरी तरह से खत्म नजर आ रही । त्रिपुरा में बीजेपी के लिए सुनील देओधर, उनके युवा प्रदेश अध्यक्ष विप्लव देव ने कड़ी मेहनत की । नार्थ ईस्ट में प्रधानमंत्री मोदी ने जो पिछले तीन सालों से जो तत्परता दिखायी वो भी कम नहीं है , उनकी लुक ईस्ट पॉलीसी के तहत केंद्र सरकार के किसी एक मंत्री हर 15 दिन में वहां का दौरा करना होता था , जो की एक नयी बात थी । और प्रधानमन्त्री मोदी का, तंज़ लेफ्ट पार्टियों के लिए - सूरज जब डूबता है तो लाल रंग का होता है और जब उगता है तो केसरिया होता है ये एक अलग सन्देश देता है और उनकी ख़ुशी को साफ़ दिखाता है ।
कुल मिलकर देखें तो यही निष्कर्ष होगा की जो राजनीति की धुरी है सम्पूर्ण देश की वो बीजेपी और मोदी के इर्द - गिर्द घूम रही ठीक वही इंदिरा गाँधी के समय की तरह । अगर विपछ ने कोई अलग और आक्रामक राणनीति नहीं बनायीं बीजेपी और मोदी के खिलाफ तो फिर उनके अस्तित्व को ही खतरा है चाहे वो बीजेपी बनाम पूरे विपछ की ही क्यों न हो , हालाँकि ये आसान भी नहीं होगा ।
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वैसे तो जब पूर्वोत्तर की राजनीति की बात होती है तो सिर्फ एक विचारधारा की ही स्वीकार्यता नज़र आती और वो है लेफ्ट, और थोड़ी बहुत कांग्रेस की । लेकिन अब स्तिथियाँ बदल गयी है और अब भगवा रंग लहराता वह पर साफ़ नज़र आ रहा है । वैसे इसकी शुरुवात तो तीन साल पहले असम से हुई लेकिन त्रिपुरा में मिला प्रचंड जनादेश इसकी स्वीकार्यता पर पूरी तरह मुहर लगाते हैं, और इसके साथ नागालैंड में भी भाजपा को मिला जनादेश सिर्फ कांग्रेस मुक्त भारत ही नहीं बल्कि लेफ्ट मुक्त भारत की भी पटकथा लिखी जा रही ।क्योंकि पूर्वोत्तर से उनका सफाया होने के बाद अब सिर्फ वो केरल में शासन कर रहे।

ए तो संतोषजनक होगा और वह पर भी सरकार बनाने का पूरा प्रयास होगा ।

कुल मिलकर देखें तो यही निष्कर्ष होगा की जो राजनीति की धुरी है सम्पूर्ण देश की वो बीजेपी और मोदी के इर्द - गिर्द घूम रही ठीक वही इंदिरा गाँधी के समय की तरह । अगर विपछ ने कोई अलग और आक्रामक राणनीति नहीं बनायीं बीजेपी और मोदी के खिलाफ तो फिर उनके अस्तित्व को ही खतरा है चाहे वो बीजेपी बनाम पूरे विपछ की ही क्यों न हो , हालाँकि ये आसान भी नहीं होगा ।
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