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                                   पूर्वोत्तर में "कमल" का कमाल , लेफ्ट धड़ाम वैसे तो जब पूर्वोत्तर की राजनीति की बात होती है तो सिर्फ एक विचारधारा की ही स्वीकार्यता नज़र आती और वो है लेफ्ट, और थोड़ी बहुत कांग्रेस की । लेकिन अब स्तिथियाँ बदल गयी है और अब भगवा रंग लहराता  वह पर साफ़ नज़र आ रहा है । वैसे इसकी शुरुवात तो तीन साल पहले असम से हुई लेकिन त्रिपुरा में मिला प्रचंड जनादेश इसकी स्वीकार्यता पर पूरी तरह मुहर लगाते  हैं, और इसके साथ नागालैंड में भी भाजपा को मिला जनादेश सिर्फ कांग्रेस मुक्त भारत  ही नहीं बल्कि लेफ्ट मुक्त भारत की भी पटकथा लिखी जा रही ।क्योंकि पूर्वोत्तर से उनका सफाया होने के बाद अब सिर्फ वो केरल में शासन कर रहे।        भाजपा को पूर्वोत्तर में मिल रही इस जबरदस्त सफलता के पीछे अगर कोई शख्स है मोदी -शाह के बाद तो वो है उनके पूर्वोत्तर प्रभारी राम माधव।  जीं हां इस व्यकित ने जो तत्परता दिखाई चाहे वो अरुणांचल हो, मणिपुर हो ,नागालैंड हो ,त्रिपुरा...

" आप " हुए आप के या " अपनों " के .......

जीं हां! ये सवाल इसलिए आज उठ रहा क्योंकि जब दिल्ली में आप सरकार आयी तब लोगों को लगा की अब अलग प्रकार की राजनीति होगी और भ्रस्टाचार का भी खात्मा होगा । जनता ने भी इस पार्टी को 67/70 सीटें देकर अपनी ज़िम्मेदारी पूरी की।   लेकिन आज तीन सालों के बाद अगर हम इसका परिणाम देखे तब आपको कुछ ऐसा ही लगेगा जैसे ये तो औरों से अलग न  हों,  चाहे राशन कार्ड का मुद्दा हो या इनके  पूर्व  कानून मंत्री की डिग्री हो , योगेन्द्र यादव और प्रशन भूषण के साथ हुआ सलूख हो, या अभी हाल ही में कुमार विश्वास को दरनिकार कर " 2-G " को राज्यसभा भेजने का फैसला ।  इन सारें फैसलों में केजरीवाल और उनके 2-3 साथियों  की ही प्रतिबद्धिता नजर आयी  । कुल मिलाकर तीन सालों  बाद केजरीवाल की छबी " मोदी विरोध " की बन कर रह गयी ।  इसके विरोध में दिल्ली के मुख्यमंत्री ने हर उसका विरोध किया जो प्रधानमन्त्री के पछ में गयी , वह चाहे सर्जिकल स्ट्राइक हो या जेएनयू विवाद हो ,  चुनाव आयोग हो या न्यायलय  । केजरीवाल ने शुरू से ही केंद्र सरकार पर हमेशा सौतेला  व्यवहार करने का आर...