" आप " हुए आप के या " अपनों " के .......
जीं हां! ये सवाल इसलिए आज उठ रहा क्योंकि जब दिल्ली में आप सरकार आयी तब लोगों को लगा की अब अलग प्रकार की राजनीति होगी और भ्रस्टाचार का भी खात्मा होगा । जनता ने भी इस पार्टी को 67/70 सीटें देकर अपनी ज़िम्मेदारी पूरी की। लेकिन आज तीन सालों के बाद अगर हम इसका परिणाम देखे तब आपको कुछ ऐसा ही लगेगा जैसे ये तो औरों से अलग न हों, चाहे राशन कार्ड का मुद्दा हो या इनके पूर्व कानून मंत्री की डिग्री हो , योगेन्द्र यादव और प्रशन भूषण के साथ हुआ सलूख हो, या अभी हाल ही में कुमार विश्वास को दरनिकार कर " 2-G " को राज्यसभा भेजने का फैसला । इन सारें फैसलों में केजरीवाल और उनके 2-3 साथियों की ही प्रतिबद्धिता नजर आयी । कुल मिलाकर तीन सालों बाद केजरीवाल की छबी " मोदी विरोध " की बन कर रह गयी । इसके विरोध में दिल्ली के मुख्यमंत्री ने हर उसका विरोध किया जो प्रधानमन्त्री के पछ में गयी , वह चाहे सर्जिकल स्ट्राइक हो या जेएनयू विवाद हो , चुनाव आयोग हो या न्यायलय । केजरीवाल ने शुरू से ही केंद्र सरकार पर हमेशा सौतेला व्यवहार करने का आर...